छठ पूजा मुख्य तौर पर बिहार का एक प्रसिद्ध त्योहार है, बिहारियो का सबसे बड़ा त्योहार छठ पूजा ही है, कोई भी बिहारी कही भी रहे छठ पूजा के दौरान वो अपने घर ज़रूर जाते है और छठ पूजा मानते है। इसमें मुख्य तौर पर उगते सूर्य ओर डूबते सूर्य की पूजा की जाती है। छठ पूजा लोग को प्रकृति से भी जोड़ती है
छठ पूजा क्यूं मनाया जाता है
राजा प्रिय व्रत और रानी मालिनी निःसंतान थी, तब ऋषि कश्यप ने उन्हे पुत्र कामेष्ठी का यज्ञ करने की सलाह दी। यज्ञ करने के बाद उन्हे एक पुत्र पैदा हुआ लेकिन वह मृत अवस्था में पैदा हुआ। कहते है की जब राजा अपने पुत्र के मृत शरीर को लेकर शमशान गए तब दुःख के कारण उन्होंने भी अपनी जान देनी चाही। तभी उनके सामने देवसेना यानी छठ माता प्रकट हुईं जिन्हे षष्ठी के भी नाम से जाना जाता है। उन्होंने राजा से कहा जो मेरी यही छठ पूजा सच्चे मन से करता है उनकी हर मनोकामना पूर्ण होती है, तब राजा और रानी ने छठ पूजा किया जिससे प्रसन्न होकर छठी माता ने उन्हे पुत्र का वरदान दिया।
जब रावण का वध करके श्री राम और माता सीता अयोध्या लौटे थे तब उन्होंने भी छठ का व्रत किया था।
छठ पूजा कब है 2024
2024 में छठ पूजा 5 नवंबर से शुरू होगी और 8 नवंबर को खत्म होगी । 5 नवंबर को नहाय खाय से सुरु होकर 6 नवंबर को खरना,, फिर 7 नवंबर को शाम का अर्ग के साथ 8 नवंबर को सुबह के अर्ग के साथ समाप्त हो जाएगी।
छठ पूजा की तैयारी कैसे की जाती है
छठ पूजा के मुख्यत 4 दिन की होती है। इसके लिऐ आपको गेहूं, लौकी, चावल, दाल, तेल, दिया, मौसम के अनुसार फल जिसमे गन्ना यानी ईख, सेब संतरे अमरूद, पानी फल, मौसमी मुख्य है, इसके अलावा दौरा, सूप भी खरीदना होता है।
छठ पूजा कैसे किया जाता है
छठ पूजा में शुद्धता और पवित्रता का खास खयाल रखा जाता है। पहला दिन जो की 2024 में 5 नवंबर से सुरु होगी उस दिन सबसे पहले तो घर का कोई एक जगह साफ करके सारा सामान वहा रख ले, पहले दिन कद्दू भात होता है, इस दिन कद्दू की सब्जी दाल और चावल नहा धो के बनाया जाता है, इस दिन घर के सभी लोग नहा कर पूजा कर ही खाते है।
दूसरा दिन यानी 6 तारीख को खरना होता है, इस दिन जिन्होंने छठ किया है, वो सुबह नहा कर खीर रोटी की तैयारी करती है। गेहूं को धो कर सुखा कर उसे पिसवाया जाता है। जो छठ करते है उन्हे शाम में ही पूजा के बाद खाना होता है, शाम को गुड़ वाली खीर बनाई जाती है और रोटी, फिर पूजा कर इसका भोग लगाने के बाद उसे जो व्रत किए है वो खाते है फिर घर के लोग खाते है।
तीसरा दिन जो व्रत करते है वो कुछ नहीं खाते। पूजा में मुख्य रूप से ठेकुआ बनाया जाता है जो की आटे जो गेहूं पिसवा कर लाया जाता है उसमे गुड़ मिलाकर बनाया जाता है।शाम को दौरा में सारा फल सूप रखकर घर के कोई भी नहा कर उसे सर पर रखकर नदी या तालाब में जाते है। वहा जाकर नीचे दौर, सूप रखकर दिया जलाया जाता है, फिर जिन्होंने व्रत किया है वे पूजा करती है, जब सूर्य अस्त होने लगता है तब उनका अर्ध कर, सभी के द्वार उन्हे जल चढ़ाया जाता है,और आपनी मनोकामना की पूर्ति की प्रार्थना की जाती है। फिर घर वापस सारा सामान लेकर आते है।
घर आकर कोशी भी भरा जाता है जिसमे 5 गन्ने को खड़ा कर बीच में दिए जलाए जाते है गीत होती है। उसे वैसे ही रहने दिया जाता है सुबह नदी में जाने से पहले फिर से कोसी भरा जाता है, आप इसे छोर भी सकते है किसी और के घर जो कोशी भरते है आप ये प्रक्रिया वहा जाकर भी कर सकते है।
चौथे दिन यानी 8 नवंबर को सुबह सूरज उगने से पहले फिर से घर में कोसी भर कर, घाट यानि नदी में सारा सामान लेकर जाते है और सूर्य उगने लगते है तो उन्हे अर्ध देकर उन्हें जल चढ़ाकर पूजा की समाप्ति होती है।
उसके बाद ही जिन्होंने व्रत किया है वे प्रसाद खाते है और सबको खिलाते है ।
इस दौरान लघभग 36 घंटे जो व्रत किए है , बिना खाए रहते है। यह एक बहुत ही पवित्र त्योहार है यह लोगो को आपस में और प्रकृति से जोड़ता है, यह इकलौता ऐसा पर्व है जिसमे डूबते सूर्य को भी प्रणाम किया जाता है उनकी पूजा की जाती है।
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